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Mayawati ne Punjab me BJP ke purane dost se milaya hath up me kya ranneeti : मायावती ने पंजाब में बीजेपी के पुराने दोस्त से मिलाया हाथ यूपी में क्यों पड़ीं सुस्त

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हाइलाइट्स:

  • मायावती ने पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से किया अलायंस
  • उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ अरसे से मायावती सुस्त दिख रही हैं
  • प्रदेश में अगले साल चुनाव, माया का अभी किसी से अलायंस नहीं
  • हाल ही में लालजी वर्मा और राम अचल राजभर को निकाला गया था

लखनऊ
कहते हैं कि राजनीति में ना तो कोई स्थाई दोस्त होता है और ना दुश्मन। बहुजन समाज पार्टी का कभी फलसफा था कि चुनाव से पहले किसी से दोस्ती नहीं लेकिन चुनाव के बाद ‘बहुजन हित’ में किसी से भी हाथ मिलाया जा सकता है। हालांकि 2019 में स्टेट गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर माया ने जब सपा से अलायंस किया तो लोग हैरान रह गए। गठबंधन का जो हश्र हुआ वो तो अतीत की बात है लेकिन भविष्य की सियासत को देखते हुए बीएसपी नए दोस्त ढूंढ रही है। पार्टी की सुप्रीमो मायावती के तेवर पिछले कुछ अरसे से बदले-बदले नजर आ रहे हैं।

‘मायावती राजनैतिक असमंजस का शिकार’

पंजाब में शिरोमणि अकाली दल से तो पार्टी ने गठबंधन करने में देर नहीं लगाई। लेकिन उत्तर प्रदेश को लेकर ऐसी कोई जल्दी नहीं दिखती। मायावती आखिर क्यों इतनी सुस्त मुद्रा में हैं? जब यूपी में विधानसभा चुनाव के लिए चंद महीने बचे हैं तो बीएसपी जमीन पर क्यों सक्रिय नहीं दिख रही है। आखिर मायावती क्यों सीधे तौर पर मैदान में नहीं उतर रही हैं? पंजाब जैसी तेजी उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं दिख रही है, इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने एनबीटी ऑनलाइन को बताया, ‘उत्तर प्रदेश में मायावती राजनैतिक असमंजस का शिकार हैं। मायावती ये तय नहीं कर पा रही हैं कि उनको सरकार के विरोध में लाइन लेकर पूरे विपक्ष के साथ सुर में सुर मिलाना है या सरकार और विपक्ष दोनों के ही खिलाफ लड़ना है। तो शायद मायावती ने दूसरा रास्ता चुना कि सरकार पर कम हमलावर लेकिन विपक्ष के लोगों पर ज्यादा हमलावर। इसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस विशेष रूप से शामिल है। मायावती के इसी असमंजस की वजह से उनकी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और पुराने नेता और एक बड़ा समर्थक लगातार उनसे अलग होता जा रहा है।’

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मायावती ये तय नहीं कर पा रही हैं कि उनको सरकार के विरोध में लाइन लेकर पूरे विपक्ष के साथ सुर में सुर मिलाना है या सरकार और विपक्ष दोनों के ही खिलाफ लड़ना है। तो शायद मायावती ने दूसरा रास्ता चुना कि सरकार पर कम हमलावर लेकिन विपक्ष के लोगों पर ज्यादा हमलावर।

सिद्धार्थ कलहंस, वरिष्ठ पत्रकार

‘पंजाब जैसा समझौता यूपी में ना हो जाए’
पंजाब में बीएसपी ने बीजेपी की पुरानी साथी रही अकाली दल से हाथ मिलाया है। अकाली के साथ 10 साल तक बीजेपी पंजाब की सत्ता में रही। वहीं कृषि कानूनों पर किसान आंदोलन के बाद अकाली दल ने बीजेपी से दोस्ती तोड़ी थी। हालांकि पंजाब में बीएसपी को सीटें 20 जरूर मिली हैं लेकिन सीधे तौर पर 12 सीटों पर ही उसके कैंडिडेट हैं, बाकी प्रत्याशियों का जुगाड़ अकाली दल कर रही है और सिंबल बीएसपी का रहेगा। वहीं सूत्रों के मुताबिक ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि मायावती की एक राष्ट्रीय पार्टी से गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है। मसला सिर्फ सीटों को लेकर आड़े आ रहा है। लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के बाद बीएसपी का जो ग्राफ चढ़ा था, विधानसभा का टिकट मांगने वालों की जो कतार थी वो कतार खत्म हो गई है। बहुत सारी सीटों पर पार्टी को टिकट के दावेदार नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में बीएसपी यूपी में भी अलायंस के लिए रास्ता खोल सकती है। मायावती ने जिस स्तर पर उतरकर समझौता पंजाब में किया है। इसमें कोई असंभव नहीं है कि वैसा ही समझौता यूपी में ना हो जाए।

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क्या माया ने बीजेपी को समझने में देर कर दी?
तो क्या मायावती का बीजेपी के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर है? इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं, ‘बीजेपी को लेकर अभी वो अपना रवैया साफ नहीं कर पाई हैं। वो एक नरम-नरम रवैया भारतीय जनता पार्टी के साथ अपनाती रही हैं। मायावती की महत्वाकांक्षा के मुताबिक बीजेपी के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है तब जबकि उनकी स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। बीजेपी ने उनके वोट बैंक के बड़े हिस्से पर डाका भी डाल दिया है। ऐसे में बीजेपी उन्हें समायोजित करने के लिए ज्यादा उत्सुक भी नहीं है। मायावती ने इसको समझने में देर की और आज भी नहीं समझी हैं। वह अपना समर्थक वर्ग बहुत तेजी से खो रही हैं।’

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मायावती की महत्वाकांक्षा के मुताबिक बीजेपी के पास उन्हें देने के लिए कुछ नहीं है तब जबकि उनकी स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। बीजेपी ने उनके वोट बैंक के बड़े हिस्से पर डाका भी डाल दिया है। ऐसे में बीजेपी उन्हें समायोजित करने के लिए ज्यादा उत्सुक भी नहीं है।

सिद्धार्थ कलहंस, वरिष्ठ पत्रकार

‘बीएसपी अपनी स्थापना के वक्त भी इतनी कमजोर नहीं थी’
यूपी में अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं। लेकिन मायावती आखिर क्यों कुछ निर्णय नहीं ले पा रही हैं। इस पर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस ने बताया, ‘सत्ता में रहते हुए मायावती का भारतीय जनता पार्टी के साथ कोई तालमेल हो नहीं सकता है। ना चुनाव पूर्व ना चुनाव के बाद। मायावती इस स्थिति को जल्दी समझ नहीं पा रही हैं। इस असमंजस ने उनको परेशानी में डाला और उत्तर प्रदेश में आज की स्थिति में बीएसपी अपनी स्थापना के समय में इतनी कमजोर नहीं थीं जितनी कमजोर स्थिति में मायावती ले आई हैं। जब उनके पास विभिन्न जातियों के असरदार नेता छोड़ गए हैं। अपना समर्थक वर्ग चला गया है। मुस्लिम समुदाय में भी नाराजगी है। कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आम तौर पर चुनाव पूर्व गठबंधन से परहेज करने वाली मायावती ने जैसे पंजाब में किया है, वैसे ही उत्तर प्रदेश में गठबंधन का साथी तलाशें या गठबंधन के लिए तैयार हो जाएं।’

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माया बीजेपी के साथ नहीं लेकिन खुलकर खिलाफ भी नहीं
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या मायावती का रुख बीजेपी को फायदा पहुंचा रहा है। जाहिर तौर पर अभी के हालात में तो बीएसपी पहले जैसी मुखर नहीं दिख रही है। धरना प्रदर्शन का सियासी कल्चर भी पार्टी के जीन में नहीं रहा है। लिहाजा सड़क पर उसकी उपस्थिति नहीं दिखती है। वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी जैसी दूसरे राज्य की पार्टी भी यूपी में काफी सक्रिय दिखती है। मायावती भले ही बीजेपी के साथ नहीं खड़ी हैं लेकिन कहीं ना कहीं उनका रवैया कई कयासों को जन्म दे रहा है।

MAYAWATI

मायावती (फाइल फोटो)

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