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यूपी के गाजियाबाद में शास्त्रीनगर के रहने वाले शिवम के जीजा और दीदी कोरोना संक्रमित हो गए थे। नोएडा के एक निजी अस्पताल में इलाज हुआ। रिपोर्ट निगेटिव आ गई। लेकिन घर आने के बाद उनके जीजा की तबीयत फिर खराब होने लगी। घर पर ही ऑक्सिजन दिए जाने का इंतजाम किया गया। उस समय उन्हें मेडिकल ऑक्सिजन नहीं मिली तो इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन लेकर काम चलाया गया।
कुछ समय बाद पता चला कि उन्हें ब्लैक फंगस हो गया है, लेकिन समय पर इलाज मिल गया। अब उनकी तबीयत ठीक है। ऐसी हालत केवल शिवम की ही नहीं है। बल्कि ऑक्सिजन की मारामारी को देखते हुए बड़ी संख्या में तीमारदारों ने अपने मरीजों के लिए मेडिकल ऑक्सिजन नहीं मिलने पर इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन का प्रयोग किया है। जबकि डॉक्टरों का कहना है कि इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन मरीज के फेफड़े के लिए खतरनाक है।
इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन का प्रयोग किए जाने की वजह से भी ब्लैक फंगस होता है। क्योंकि यह मेडिकल ऑक्सिजन जितना शुद्ध नहीं होता है। साथ ही इसके सिलिंडर बहुत साफ सुथरे नहीं होते हैं। जंग लगे हुए सिलिंडर होते हैं लेकिन तीमारदार कोरोना मरीज को ऑक्सिजन देने के लिए इसका ध्यान नहीं रखे।
मेडिकल कार्यों के लिए नहीं होती इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन
आरडीसी में हर्ष क्लीनिक चलाने वाले ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. बीपी त्यागी बताते हैं कि मेडिकल कार्यों के लिए इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन नहीं होती है। इंडस्ट्री में जो ऑक्सिजन प्रयोग होती है उसमें ऑक्सिजन के अलावा अन्य गैसें भी होती हैं जो फेफड़े के लिए घातक होती हैं। इंडस्ट्री के ऑक्सिजन सिलिंडर साफ-सुथरे नहीं होते हैं। इस आपाधापी में लोगों ने सिलिंडर का ध्यान नहीं रखा, जहां से मिला उसी में गैस भरवा ली।
दोनों की शुद्धता में है अंतर
ऑक्सिजन को बाकी गैसों से अलग करके तरल ऑक्सिजन के रूप में जमा करते हैं। इसकी शुद्धता 99.5% होती है। इसे विशाल टैंकरों में जमा किया जाता है। यहां से वे अलग टैंकरों में एक खास तापमान पर डिस्ट्रिब्यूटरों तक पहुंचाते हैं।
डिस्ट्रिब्यूटर के स्तर पर तरल ऑक्सिजन को गैस के रूप में बदला जाता है और मेडिकल ऑक्सिजन सिलिंडर में भरा जाता है, जो सीधे मरीजों के काम में आता है। जबकि इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन की शुद्धता 93 से 95 फीसदी के बीच होती है।
गंदगी जहां होगी, वहां होगा फंगस
आईएमए गाजियाबाद के अध्यक्ष डॉ. आशीष अग्रवाल ने बताया कि जहां पर गंदगी होगी वहां पर फंगस फैलने का खतरा सबसे अधिक होगा। इंडस्ट्रियल ऑक्सिजन कम शुद्ध होती है। घर पर लोगों ने बिना मेडिकल एक्सपर्ट के इसका प्रयोग किया। इसलिए इससे भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़े हैं। कोरोना मरीज पहले से ही स्टेरायड ले चुका होता है।
गैस भरते समय भी हुई लापरवाही
जब ऑक्सिजन की मारामारी थी तो लोग गैस भरवाने के लिए हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और कार्बन डाई आक्साइड के सिलिंडर तक ले कर पहुंचते थे, जो मरीज के लिए काफी घातक होना था। लेकिन तीमारदार इस बात को समझ नहीं पा रहे थे। जिसकी वजह से गंदगी के कारण ब्लैक फंगस को पनपने का पूरा मौका मिल गया।
गाजियाबाद में कम हो रहे केस, लेकिन…
गाजियाबाद में ब्लैक फंगस का असर धीरे-धीरे कम हो रहा है। जिले में अब तक इसके 60 मरीज सामने आए हैं, जिनमें से 30 को अस्पताल से छुट्टी मिल चुकी है। इनमें से कुछ का ओपीडी के जरिए उपचार चल रहा है। मंगलवार को ब्लैक फंगस का नया मामला सामने आया।
एक मरीज ने ब्लैक फंगस से दम तोड़ा
स्वास्थ्य अधिकारी के अनुसार इनमें से 9 मरीज यशोदा में, 10 मरीज हर्ष पॉली क्लिनिक, 7 मैक्स और 2 मरीजों का पल्मोनिक अस्पताल में उपचार चल रहा है। डॉ. बीपी त्यागी ने बताया कि उनके पास 23 मरीज आए थे, जिनमें से 12 मरीजों को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। एक मरीज की मौत हो गई थी। दवाओं की किल्लत बनी हुई है।
सांकेतिक तस्वीर
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