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सार
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने गणित की काबिलियत की वजह से लाखों लोगों की जान बचाई है। उन्होंने नर्सिंग के पेशे और अस्पतालों का रंग-रूप ही बदल दिया था।
अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस: फ्लोरेंस नाइटिंगेल
– फोटो : सोशल मीडिया
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नोबेल नर्सिंग सेवा की शुरुआत करने वाली ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की कहानी तो आपने जरूर सुनी होगी। उनकी सेवाओं के किस्से भी सुने होंगे। लेकिन क्या आपने गणित की काबिलियत की वजह से लोगों की जान बचाने वाला किस्सा सुना है? हैरान कर देने वाली बात है न। चलिए आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस और फ्लोरेंस नाइटिंगेल के 184वें जन्मदिवस के अवसर पर हम आपको गणित की जीनियस, फ्लोरेंस नाइटिंगेल का यही किस्सा बताते हैं।
इस वजह से रखा गया फ्लोरेंस नाम
नर्सिंग के पेशे और अस्पतालों का रंग-रूप बदलने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के फ्लोरेंस शहर में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। इसलिए उनका नाम फ्लोरेंस रखा गया। सामंती परिवार से संबंध रखने की वजह से नाइटिंगेल और उनकी बहनों को घर पर ही शिक्षा दी जाती थी। नाइटिंगेल गणित के बड़े-बड़े कैलकुलेश को बड़ी ही आसानी से हल कर देती थीं। पहाड़े तो उन्हें मुंह जुबानी याद रहते थे।
उन्नीसवीं सदी की परंपरा के अनुसार नाइटिंगेल का परिवार वर्ष 1837 में यूरोफ की यात्रा करने निकल गया। उस समय यह दौरा बच्चों की शिक्षा के लिए बेहद जरूरी माना जाता था। फ्लोरेंस को अंकों के साथ खेलना बहुत शौक था। इसलिए वे पूरे सफर के दौरान हर देश और शहर की आबादी, अस्पताल और दान-कल्याण की संस्थानों की संख्या को अपनी डायरी में लिखा करती थीं।
गणित में नाइटिंगेल की रूचि को मद्देनजर देखते हुए, उन्हें गणित की बेहतर तालीम के लिए ट्यूशन भेज दिया गया। फ्लोरेंस की मां इसके सख्त खिलाफ थीं। यूरोप के सफर के दौरान उन्होंने एक अजीब बात कही, जिसकी वजह से उनके मां-बाप बेहद परेशान हो गए। उन्होंने कहा, ईश्वर ने मुझे मानवता की सेवा का आदेश दिया है। किंतु उन्होंने मुझे इस बात की जानकारी नहीं दी कि मैं मानवता की सेवा कैसे कर सकती हूं।
लोगों की सेवा करने के लिए 1844 में फ्लोरेंस ने नर्स बनने की ठानी। उन्होंने सैलिसबरी में जाकर नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने की जिद की। लेकिन उनके मां-बाप ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी। मां-बाप के खिलाफ जाकर फ्लोरेंस रोम, लंदन और पेरिस के अस्पतालों का दौरा किया करती थी। तमाम कोशिशों के बाद भी 1850 तक नाइटिंगेल शादी के लिए नहीं मानी। उनका कहना था कि ईश्वर ने उन्हें किसी और काम के लिए चुना है।
सालों की मेहनत के बाद 1853 में फ्लोरेंस को लंदन के हार्ले स्ट्रीट अस्पताल में नर्सिंग की प्रमुख बनने का अवसर मिला। इसी वर्ष क्रीमिया का युद्ध भी शुरू हो गया था। ब्रिटिश सैनिक अस्पतालों की दुर्दशा की खबरें सामने आने लगीं। ब्रिटेन के तत्कालीन युद्ध मंत्री सिडनी हर्बर्ट, नाइटिंगेल को जानते थे। इसलिए उन्होंने नाइटिंगेल को 38 नर्सों के साथ तुर्की के स्कुतरी स्थित मिलिट्री अस्पताल जाने को कहा।
विस्तार
नोबेल नर्सिंग सेवा की शुरुआत करने वाली ‘फ्लोरेंस नाइटिंगेल’ की कहानी तो आपने जरूर सुनी होगी। उनकी सेवाओं के किस्से भी सुने होंगे। लेकिन क्या आपने गणित की काबिलियत की वजह से लोगों की जान बचाने वाला किस्सा सुना है? हैरान कर देने वाली बात है न। चलिए आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस और फ्लोरेंस नाइटिंगेल के 184वें जन्मदिवस के अवसर पर हम आपको गणित की जीनियस, फ्लोरेंस नाइटिंगेल का यही किस्सा बताते हैं।
इस वजह से रखा गया फ्लोरेंस नाम
नर्सिंग के पेशे और अस्पतालों का रंग-रूप बदलने वाली फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म इटली के फ्लोरेंस शहर में रहने वाले मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। इसलिए उनका नाम फ्लोरेंस रखा गया। सामंती परिवार से संबंध रखने की वजह से नाइटिंगेल और उनकी बहनों को घर पर ही शिक्षा दी जाती थी। नाइटिंगेल गणित के बड़े-बड़े कैलकुलेश को बड़ी ही आसानी से हल कर देती थीं। पहाड़े तो उन्हें मुंह जुबानी याद रहते थे।
बच्चों की शिक्षा के लिए यह थी उन्नीसवीं सदी की परंपरा
उन्नीसवीं सदी की परंपरा के अनुसार नाइटिंगेल का परिवार वर्ष 1837 में यूरोफ की यात्रा करने निकल गया। उस समय यह दौरा बच्चों की शिक्षा के लिए बेहद जरूरी माना जाता था। फ्लोरेंस को अंकों के साथ खेलना बहुत शौक था। इसलिए वे पूरे सफर के दौरान हर देश और शहर की आबादी, अस्पताल और दान-कल्याण की संस्थानों की संख्या को अपनी डायरी में लिखा करती थीं।
फ्लोरेंस की इस बात से परेशान हो गए माता-पिता
गणित में नाइटिंगेल की रूचि को मद्देनजर देखते हुए, उन्हें गणित की बेहतर तालीम के लिए ट्यूशन भेज दिया गया। फ्लोरेंस की मां इसके सख्त खिलाफ थीं। यूरोप के सफर के दौरान उन्होंने एक अजीब बात कही, जिसकी वजह से उनके मां-बाप बेहद परेशान हो गए। उन्होंने कहा, ईश्वर ने मुझे मानवता की सेवा का आदेश दिया है। किंतु उन्होंने मुझे इस बात की जानकारी नहीं दी कि मैं मानवता की सेवा कैसे कर सकती हूं।
1844 में इस वजह से किया नर्सिंग पेशे का चुनाव
लोगों की सेवा करने के लिए 1844 में फ्लोरेंस ने नर्स बनने की ठानी। उन्होंने सैलिसबरी में जाकर नर्सिंग की ट्रेनिंग लेने की जिद की। लेकिन उनके मां-बाप ने उन्हें इस बात की इजाजत नहीं दी। मां-बाप के खिलाफ जाकर फ्लोरेंस रोम, लंदन और पेरिस के अस्पतालों का दौरा किया करती थी। तमाम कोशिशों के बाद भी 1850 तक नाइटिंगेल शादी के लिए नहीं मानी। उनका कहना था कि ईश्वर ने उन्हें किसी और काम के लिए चुना है।
1853 में मिला नर्सिंग की प्रमुख बनने का मौका
सालों की मेहनत के बाद 1853 में फ्लोरेंस को लंदन के हार्ले स्ट्रीट अस्पताल में नर्सिंग की प्रमुख बनने का अवसर मिला। इसी वर्ष क्रीमिया का युद्ध भी शुरू हो गया था। ब्रिटिश सैनिक अस्पतालों की दुर्दशा की खबरें सामने आने लगीं। ब्रिटेन के तत्कालीन युद्ध मंत्री सिडनी हर्बर्ट, नाइटिंगेल को जानते थे। इसलिए उन्होंने नाइटिंगेल को 38 नर्सों के साथ तुर्की के स्कुतरी स्थित मिलिट्री अस्पताल जाने को कहा।
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